Wednesday, October 23, 2019

व्यंग्य आलेख 
सिंगल यूज़ की खोज में .......
 भारत जयन्तियों का देश है। हर दिन किसी ना किसी महान आत्मा ने भारत में भी जन्म लिया ही है। भारत महान आत्मात्मक देश है । भारत ही नहीं दुनिया महात्मा गांधी की 150 वी जयंती को मना रही है। वहीं कुछ लोगों की आत्मा उन्हें स्वीकारने से मना कर रही है। महात्मा गांधी अपने विचारों से भारत ही नहीं दुनिया में आज भी प्रासंगिक हैं। कुछ विचारकों द्वारा उनके विचारों की उनकी ही तरह खोज की जा रही है। उस खोज में मैं भी हूं। मेरी खोज पर उनके विचारों से ज्यादा उनके नाम के अभियान पर है। मेरी खोज की मौज उस शीर्ष पर झूलती नजर आ रही है जहां ठहरना भी मुश्किल है वह जहां से गिरना भी कठिन है। भारत जैसे लोकतांत्रिक देश के मुखिया ने सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध का आह्वान किया है। कभी कभीवतो लगता है कि भारत ही नहीं दुनिया के लोग आव्हान पर ही अपना जीवन चलाते हैं। हमेशा एक डर बना रहता है कि कोई आव्हान ना हुआ तो हम बेकार और निठल्ले हो जाएंगे। दुनिया का हर आदमी सुविधा को पसंद करता है और उसकी मजबूरी है कि सुविधा के साथ दुविधा उसे एक के साथ एक फ्री उपहार की तरह मिलती है। अब सिंगल यूज प्लास्टिक का उपयोग न करने का निर्देश मिला तो मेरे सामने भी फ्री वाली सुविधा की दुविधा साक्षात देव दूत सी खड़ी हो गई। सामने खड़े व्यक्ति या विचार को नकारना कठिन है। अतः इस आव्हान को क्यों स्वीकार करे। स्वीकारता में समर्पण है और विरोध में पद या धन का समर्पण । विकल्प की खोज में आव्हान का मूल भाव बाढ़ के पानी में तिनके सा बहता नजर आ रहा है। कुछ जन्मजात लोग फिर सरकार को कोसते नजर आएंगे। इससे होने वाली बेरोजगारी, मंदी का रोना रोयेंगे। कहेंगे ये फुटपाठी, गरीबों पर अत्याचार है। बड़े माल वालों को छूट क्यों ? सबको रोको। हमारा मानस संत को देखकर संतत्व ग्रहण करे ना करे बड़े पापी के आधार पर छोटे मोटे पाप ज़रूर करना चाहता है। ऐसे लोग सब प्लास्टिक पर रोक लगाने की मांग करेंगे। फिर कहेंगे हम तो यूज ही नहीं करते। हम भारतीय कहां किसी चीज का सिंगल यूज करते हैं। हम तो सिग्नल का भी कम से कम डबल यूज करते हैं । भारत में कई पदकविहीन निशाने बाज इनकी ही देन है। फिर भी हम एक ही वस्तु का कई बार और चौकाने वाले यूज करते है। ऐसे कई उदाहरण हैं  पर एक आप याद करिए टूथब्रश। दांतो की सफाई के बाद बाथरूम की, बर्तनों की सफाई करता है, उसके बाद नाड़ा पिरोने के काम भी आता है, फिर उसकी खूंटी बनाकर कपड़े टांगे जा सकते हैं आदि आदि। जब सिंगल उपयोगी प्रति व्यक्ति उपलब्ध एक ब्रश का बहु उपयोगी हो सकता है तो फिर बहुतायत में मिलने वाली प्लास्टिक की कैसे सिंगल यूज की हो सकती है ? हम भारतीय बहूउपयोगिता के सिद्धांत से असली जनक है। जनक के घर एक प्लास्टिक कैसे दोबारा उपयोग से वंचित हो सकती है। अब आप भी देखिए, प्लास्टिक की थैली का उपयोग पहले सामान लाने में, फिर सामान के भंडारण में,  फिर कचरा फेंकने में, फिर थैली फट जाए तो उसका उपयोग रस्सी की तरह थैली का मुंह बांधने में तो कम से कम करते ही है। यह क्रम आगे भी उपयोग होता ही है और फिर हम धार्मिक अपनी मन्नत का धागा  कपड़े या नाड़े से नहीं प्लास्टिक से करने लगे हैं। यकीन ना हो तो किसी मंदिर या मस्जिद के पास के पेड़ या वहां लगी जाली पर आप निगाह मार सकते हैं।  यदि प्लास्टिक सिंगल यूज का हो कर आदमी से भगवान तक की कड़ी के रूप में उपयोगी हो रहा है। कई बार तो लगता है की प्लास्टिक ना होगा तो हमारी मन्नत हम कैसे भगवान तक पहुंचाएंगे।  मन्नत पूरी हो ना हो प्लास्टिक का उपयोग हम पूरा पूरा करते ही हैं। कुछ लोगों का मानना है कि प्लास्टिक का ज्यादा उपयोग धरती को बंजर बना रहा है, प्रदूषण को बढ़ा रहा है, कई बीमारियों को जन्म दे रहा है,  पर हम कैसे मान लें। हमको तो हर चीज का सबूत चाहिए। सबूत नहीं तो कोई मान्यता मान्य नहीं। कहा जाता है कि वस्तुएं उपयोग के लिए बनी है। जनम -  मरण भगवान के हाथों में है तो फिर धरती को बंजर ना बनाना, बीमारियों को बढ़ाना घटाना, प्रदूषण को कम ज्यादा करना हम जैसे निरीह मानव के हाथ में या अधिकार में कैसे आ सकता है। और आ भी गया तो हम अपने अधिकार का उपयोग कहां करते हैं। हम तो उम्मीद करते हैं कि जो कुछ करें वह हमारा पड़ोसी करें। हम तो केवल नुक्ताचीनी करेंगे या चीनी सामान की खरीदारी। आखिर पड़ोसन या पड़ोसी का ध्यान रखना भी तो हमारा अधिकार और कर्तव्य है। कभी तो लगता है विपक्ष का भी यही दायित्व है। विपक्ष सेटिंग ना होने तक तो सरकार के विरोध का कार्य ही करता है। हालांकि एक चमत्कार आजकल देश में देखा जा रहा है। हम देश के मुखिया के आह्वान को बहुत महत्व देने लगे हैं क्योंकि वह देश हित में कोई धारा लगा भी सकते हैं तो कोई हटा ही देते हैं। परिणाम आने से स्वच्छता अभियान के आव्हान पर हम उनके साथ रहे तो लगा कि चलो आगे भी साथ निभाते हैं।  प्लास्टिक का उपयोग हम भी कम करते हैं और लोगों से भी कम करवाते हैं। गांधी का देश उन्हें कैसे भूल सकता है। हां उनके विचारों की बात अलग है। आपने मेरी बात पढ़ी और आपके भी कुछ पल्ले पड़ी तो आप भी मेरी तरह अभी निर्णय करें कि सिंगल यूज़ प्लास्टिक का हम उपयोग न्यूनतम ही करेंगे। हाथ में होगी कपड़े की थैली, तो दुनिया ना होगी मैली। 

डॉ दीपेंद्र शर्मा drdeependrasharma@gmail.com
55, सुभाष मार्ग धार म प्र मो 9425967598
व्यंग्य आलेख 

बैंकों से रुपया वापस लेना आसान ? 


धन किसी देश ही नहीं व्यक्ति की भी सबसे बड़ी सामर्थ्य है। अब यह सामर्थ्य घर बदल चुकी है। सामर्थ्य के लिए समर्थ होना ज़रूरी है। देश में आर्थिक लेन- देन हेतु कभी साहूकारी या महाजनी प्रथा प्रचलित थी। उन प्रथाओं पर लोगो का विश्वास था। अधिक ब्याज व अनियमितता के चलते यह कारोबार चाहे विलुप्त सा हो गया गया है पर उसके गुण अवगुण नहीं।  आजकल धन का लेन- देन बैंकों के माध्यम से हो रहा है। वहीं आपके सारे गुणों के दर्शन हो जायेगे। फिर आपको भगवान ही नजर आएंगे, या फिर दिन में तारे। पहले नोट डब्बों, साड़ियों, मटकों, थैलियों, पेटियों, आलमारियों, बिस्तरों, अंडर गारमेंट तक में रखे जाते थे। नोटबन्दी के बाद अधिकांश जमापूंजी बैंकों के पास जमा है। बैंकों में अपना जमा रुपया निकालना आम आदमी के लिए बड़ा कठिन होता जा रहा है। केवल  मोदी, माल्या,  कांडा, चौकसे जैसे कुछ उद्योगपति भारतीय ही इसके अपवाद है। कुछ बैंकों के कुछ कर्मचारियों का व्यवहार तो ऐसा है जैसे लगता है जैसे दिए रुपये की इंट्री तो आपके खाते से हो रही है पर निकासी उस बैंक कर्मी की जेब से। रुपए सरलता से तरल ना हो जाये इसलिए कई मनमाने ठोस नियम बना दिये है, कुछ नियमों से तो शायद आर बी आई भी अनभिज्ञ होगा। वैसे ही ये नियामक ग्राहक के दुखों से कहा परिचित होते है। लगता है नित नए नियमों से बैंक में अपना जमा रुपया वापस निकालना हाथी के मुंह से गन्ना निकालने जैसा है। हालांकि हाथी दयावान हो सकता है। वह इंसान थोड़े ही है। रुपया निकालने बैंक जाए तो पहले तो फुटबॉल की भांति तीन चार काउंटर फिक लो, फिर अपने मोबाइल से प्रिय दोस्त से बतिया कर फुर्सत हुए कर्मचारी के बैंक काम करने की थकान पड़ लो,  फिर प्रवचन सुनना ही है इतना न्यूतम तो रखना ही है? प्रतिदिन इससे ज्यादा राशि नहीं निकाल सकते ? पर्ची मत भरों एप्प डाउनलोड कर लो। ताकि कर्मचारी का लोड डाउन हो सके, और वह अप। आप पर हावी। पिछले दिनों तो एक बैंक की पासबुक पर सील लगी मिली। आपके खाते की जमा पर मात्र एक लाख की जमा राशि की ही ग्यारंटी है। हो सकता है कल सारे बैंक नियमों के स्थान पर गीता सार छपाने लगेंगे। क्या साथ लाये हो ?  तुम्हारा क्या है ? तुमने क्या खोया है ? क्यों व्यर्थ चिंता करते है ? जो लिया कहीं से भी यही दिया है। आज जो तुम्हारा है कल किसी और का होगा। नहीं तो तब तक तो हम कुंडली मारकर बैठे ही है, आदि आदि। हमने प्राण पर्याप्त पी ही लिए है तो अपने प्राण क्यों देते हो। हमने आपको हर्ट किया है और आपने बदले में हार्ट अटैक ले लिया। हमें एक विचार आ रहा है कि जब आपने महाजनों और साहूकारों पर भरोसा नहीं किया तो हम बैंकों पर क्या सोचकर भरोसा कर लिया ? क्या वैसेे ही जैसे आप लोग राजनीतिज्ञों पर भरोसा कर लेते हो ? फिर भी आप को अपने भगवान पर भरोसा है तो भरोसा बनाए रखो। हम सुनेेे ना सुने वह जरूर सुनेगा। हो सकता है कि आपका भाग्य प्रबल हो और आपका जमा रुपया सहजता तथा सम्मान सहित कभी ना कभी आपको वापस मिल ही जाए। तब तक तो राम नाम ही सत्य है। 

डॉ दीपेंद्र शर्मा 
55, सुभाष मार्ग धार म प्र 
मो 9425967598